जब अभिनय में पात्र की वेशभूषा और दृश्य सामग्री सभी कुछ कृत्रिम होता है। लेकिन कृत्रिमता को यथार्थता का रूप Aaharya Abhinay के अंतर्गत दिया जाता है। कृत्रिम को यथार्थ बनाने के लिए अभिनेता जिन उपकरणों को बाहर से आयत या धारण करता है उन्हें आहार्य अभिनय की संज्ञा दी गई है।
मंच पर विविध दृश्यों की संयोजना, सज्जा और अभिनेताओं की वेशभूषा तथा मेकअप आहार्य अभिनय के अंतर्गत आते हैं। नेपथ्य में जो कुछ किया जाता है, उसे भी आहार्य कहते हैं । यहाँ नेपथ्य शब्द का प्रयोग एक व्यापक अर्थ में किया गया है और उसमें वे सभी उपक्रम और तैयारियाँ आती हैं जो अभिनेताओं के अभिनय आरंभ करने से पूर्व की जाती हैं।
नेपथ्य Back Stage में पहले से प्रबंधित साज-सज्जा, वेशभूषा और परिदृश्य अभिनेता के रूप को प्रसंगानुसार विश्वसनीयता और यथार्थता प्रदान करते हैं और अभिनेता अंग आदि के अभिनय से इच्छित भावों की अभिव्यक्ति सरलता से कर लेते हैं।
सर्वप्रथम नेपथ्य के 4 प्रकार बताए गए हैं :
1- पुस्त : विमान, यान और हाथी तथा पर्वत आदि वस्तुएँ (जिन्हें मंच पर साक्षात प्रस्तुत करना संभव नहीं था)। कृत्रिम रूप से बनाना और मंच पर प्रस्तुत करना।
2- अलंकरण : मंच की साज-सज्जा।
3- अंगरचना : अभिनेताओं के अंगों का मेकअप।
4- सज्जीव: मंच पर प्रस्तुत होने योग्य सजीव प्राणी।
पुस्त नेपथ्य के 3 भेद किए गए हैं :
1- संधिम : चटाई, बाँस, चर्म और वस्त्र आदि से निर्मित वस्तुएँ जिनमें जोड़ (संधि) रहता है।
2- व्याजिम : यंत्र की सहायता से निर्मित वस्तुएँ।
3- वेष्टिम : किसी चीज़ को लपेट कर (आवेष्टन) बनाए गए उपकरण।
ऐसा प्रतीत होता है कि वेशभूषा और साज-सज्जा की सुस्पष्ट, सुदीर्घ और सुप्रचलित परंपराएँ थीं और नाट्यशास्त्र में उन सभी को संकलित कर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि मंच पर भारी-भरकम चीजों को दिखाना आवश्यक नहीं है। उन्हें केवल असल की नकल और हलका-फुलका होना चाहिए। जो वस्तुएँ मंच पर अपने असली रूप में प्रस्तुत की जाती हैं उन्हें लोकधर्मी और जो प्रतीक एवं भावरूप में दिखाई जाती हैं उन्हें नाट्यधर्मी कहा गया है।
वस्तु को हलका रखने के लिए सलाह दी गई है कि उनका निर्माण लाख (आजकल प्लास्टिक), लकड़ी, चमड़ा, बाँस और कपड़ों से करना चाहिए। पर्वत, प्रासाद, मंदिर, हाथी, घोड़ा, रथ, विमान और ढाल आदि वस्तुओं का ढाँचा पहले बॉस से बना लिया जाए। तदुपरांत उन्हें रंग-बिरंगे कपड़ों से मढ़ दें। यदि उपयुक्त वस्त्र उपलब्ध न हो तो ताड़पत्र या चटाई ही उनके ऊपर चढ़ा दें। शस्त्रों को भी घास-फूस और खपच्चों से बनाना चाहिए और उन्हें लाख या माँड़ से चिपकाया जा सकता है।
हाथ-पैर और सिर बनाने के लिए ढाँचा घास-फूस और घड़ा का इस्तेमाल किया जाए। सादृश्य के आधार पर बहुत-सा सामान मिट्टी से भी बनाया जा सकता है। विविध आकार के पर्वत, घड़ा, फूस, सन, लाख, मोम, कपड़ा और बेल के गूदा से तैयार करने चाहिए। नाना जाति के फल-सब्जी और विविध प्रकार के बर्तन, लाख से बनाए जा सकते हैं।
सजाने की वस्तुएँ बर्तन, वस्त्र, ताम्रपत्र और मोम से तैयार की जाएँ। उन्हें नील और अन्य रंगों से रंगीन बनाया जाए और पन्नी लगाकर उन्हें चमकदार किया जाए। अथवा तांबे की पालिश की जाए। विविध प्रकार के दिव्य मुकुटों पर पन्नी नगाकर उनमें मणि-माणिक की चमक लाई जाए।
साधारण मानवीय पात्रों के द्वारा सुवर्ण तथा रत्नजड़ित भारी मुकुट और माभूषण पहनकर मंच पर अभिनय करना संभव नहीं होगा। इसलिए अभिनेताओं वारा ऐसे आभूषण पहनने का निषेध किया गया है और इस बात पर बार-बार जोर दिया गया है कि पात्रों के गहने पतले ताम्रपत्रों से बनाए जाएँ और मोम या ई से पन्नी लगाकर उन्हें चमकदार बनाया जाए।
One thought on “Aaharya Abhinay आहार्य अभिनय”