वाचिक अभिनय के अंतर्गत संवाद, कथन-शैली, भाषा, व्याकरण, छंद, काकु (स्वर का आरोहावरोह), शमन, दीपन और काव्यशास्त्र सभी कुछ आता है और इस Vachik Abhinay का वर्णन नाट्यशास्त्र में मिलता है। लेकिन हम इस अध्याय में अपने को केवल वाक्य-विन्यास, संवाद, शैली तक ही सीमित रखेंगे।
जैसा कि सर्वविदित है प्राचीन संस्कृत नाटकों में संवाद अधिकांशतः पद्यात्मक होते थे। यूनान और रोम के प्राचीन नाटकों में भी इसी पद्धति को अपनाया गया था। इसका एक मुख्य कारण यही था कि साहित्य को लिपिबद्ध करने की सुविधा, प्रेस आदि उपलब्ध नहीं थे और पद्य कंठस्थ करना जितना सरल होता है, उतना गद्य नहीं।
दूसरे, भावों की तीव्रता और गहनता को कोरे शब्द नहीं व्यक्त कर सकते। शब्दों के साथ स्वर-परिवर्तन और लय भी आवश्यक हैं जो स्वयं अपने में एक भंगिमा-अनुभाव हैं तथा अभिनय और अभिव्यक्ति का एक अभिन्न अंग हैं। आज यथार्थवादी संवाद भले ही पद्यात्मक न हों, लेकिन मंच पर जब कुशल अभिनेता अपने भावातिरेक को प्रगट करता है तब उसका वक्तव्य अतुकांत कविता ही बन जाता है और उसमें भी एक लय होती है।
इसलिए नाटकों के संवादों में केवल शब्दों का चयन ही नहीं, उनको बोलने का ढंग भी महत्वपूर्ण है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए भरत ने काकु, विराम और वाक्य-विन्यास का सूक्ष्म विवेचन किया है।
पाश्चात्य नाट्यविदों ने भी कथन शैली, विराम स्वर और काकु पर विशेष बल दिया है। कोंस्तांतिन स्तानिस्लावस्की ने ‘बिल्डिंग ए कैरेक्टर’ (Building a Character) नामक ग्रंथ में तथा रॉबर्ट एल वेनिडिटी ने अपनी पुस्तक ‘एन एक्टर एट वर्क’ (An Actor at Work) में इस विषय पर कई अध्याओं में विचार किया है। स्तानिस्लावस्की ने लय-ताल को भी वाचिक अभिनय का एक महत्वपूर्ण अंग बताया है।
सर्वप्रथम भरत ने वाचिक अभिनय के छः रूप बताए हैं
1 – पद : जैसाकि नाम से प्रगट है, नाना अर्थ और रस से परिपूर्ण सरल गद्य और पदय में रचित पाठ पद कहलाता है।
2 – सूचा : पहले शारीरिक अभिनय के द्वारा किसी भाव को व्यक्त करना मिर शब्दों के द्वारा उसकी व्याख्या करना। इसका प्रयोग नृत्य और संगीत में होता
3 – अंकुर : नर्तक द्वारा पदों का अर्थ केवल आंगिक अभिनय के द्वारा व्यक्त करना।
4 – शाखा : संवाद बोलते समय सिर, मुख और हाथ-पैर आदि अंगों की मुद्राओं का प्रयोग करना।
5 – नाट्यायित : नाटक के प्रारंभ में परिचय के रूप में सूत्रधार का वक्तव्य देना।
6 – निवृत्यांकुर : एक पात्र का संवाद बोलना और दूसरे पात्र का उसे नृत्य की मुद्राओं में ढालना।
2 thoughts on “Vachik Abhinay वाचिक अभिनय”